एक दिन मै और मेरे बाबा जी आम के बागीचे में बैठे हुए
थे ,कुछ बातचीत के बाद मैंने उन्हें एक शायरी सुनाई-
मेरा जमीर तो बेइमा हो जाता है
जब कोई सामने से गुजर जाता है !
अरे , बेइमा तो इसी उम्र में होंगे न
कुछ उम्र बाद तो बुढ़ापा आ जाता है !!
इस शायरी को सुनने के बाद मेरे बाबा जी के चेहरे की जैसे
रौनक ही चली गयी ;फिर मैंने बाबा जी को एक दूसरी शायरी सुनाई-
जवानी में क्या नही होता है
जमीर जमी तले होता है !
कुछ उम्र और हो जाय तो क्या
इश्क बुढ़ापे में भी होता है !!
ये सुनने के बाद बाबा जी खिलखिला से उठे I तब मै समझा कि
बुड्ढे हैं पर दुपट्टों से प्यार , कुछ जवाँ जज्बात तो हो ही जाते हैं II